>>रक्षाबंधन स्पेशल - भाई बहन से जुरे कुछ खट्टे-मीठे लम्हों की कहानी

भाई-बहन का रिश्ता हमारी हथेलियों की लकीरों में लिखा हुआ आता है. मतलब ये कि हम अपना भाई या बहन खुद नहीं चुनते, बस किस्मत की बात होती है. इसीलिए, हर किसी का अनुभव भी अलग होता है. कुछ भाई-बहनों के बीच बहुत प्यार होता है तो कुछ में बहुत तकरार होती है. तो हम ने भी कुछ लोगों से अपने किस्से बयां करने को कहा. तो पढ़िए, नोक-झोंक, प्यार, हंसी और ख़ुशी के बंधन से सजी, कुछ ऐसी ही कहानियां.







1. राज

मुझे याद है कि हमारे स्कूल में कई मारवाड़ी लड़के पढ़ते थे और ज़्यादातर लड़कियां उन्हें ही राखी बांधा करती थीं. क्यों? क्योंकि उनके पास सबसे ज़्यादा पैसे होते थे! कुछ लड़कों को तो हम 'Brother India' के नाम से भी बुलाते थे.

Source: PTI
 

2. अनुजा

मेरे पास कई सारी किताबों का ढेर है क्योंकि हर राखी मेरा भाई मुझे पैसों की जगह किताबें देता था. उसका मानना था कि पैसे खर्च हो जायेंगे लेकिन किताबें हमेशा काम आएंगी.

Source: pocketcultures
 

3. रेमा

हमारे स्कूल में रक्षाबंधन के दिन बच्चों की घिग्घी बंध जाती थी, क्योंकि हमें राखी पर भाई-बहन बनाना और राखी पहनाना मना था. और ये निर्देश स्कूल डायरी में लिखा था. पता नहीं क्यों?

Source: rakshabandhanwishes2015
 

4. प्रियोदत्त

मैं उम्र में छोटा होने के साथ-साथ बहुत खुराफ़ाती था. मेरी बहन मुझसे पांच साल छोटी है. 8वीं क्लास के दौरान मैंने अपने कुछ दोस्तों के साथ स्कूल से बंक मारना शुरू कर दिया था. यशस्वी (मेरी बहन का नाम) को मुझे अपनी साइकिल से ले कर स्कूल आना और जाना पड़ता था. इसीलिए आधी छुट्टी में स्कूल से भाग जाने पर मैं पूरी छुट्टी होते ही स्कूल के गेट पर आ जाता और साइकिल के पीछे उसे बैठाकर घर ले जाता. वो हमेशा पूछती थी कि 'पिया (मेरा घर का नाम) तू आधी छुट्टी में कहां चला जाता है?' मेरे पास भी मुक्कमल जवाब होता था, 'बहन...मैं तेरे लिए चीज़ लेने जाता हूं, मीठी-मीठी चीज़' और उसके हाथ पर जामुन रख देता जो मैं एक सरदार के खेत से चोरी-छुपे तोड़ कर लाता था. वो बहुत खुश होती. बहुत दिनों तक ऐसा चलता रहा. इन दिनों मेरी पढ़ाई प्रभावित हो रही थी. मेरी संगत भी काफ़ी ग़लत हो रही थी, लेकिन एक दिन किसी कारणवश मैं जामुन नहीं ला पाया. उस दिन यशस्वी ने घर पर मां को सब कुछ सच-सच बता दिया. मां ने मेरी जो कुटाई की उसके बाद कभी मैं स्कूल से नहीं भागा. उन लड़कों की तरफ़ से ध्यान हटा कर पढ़ने-लिखने लगा. यशस्वी जानती थी कि सुबह स्कूल जाते वक़्त मैं उससे उस मार का बदला लूंगा पर फ़िर भी हिम्मत कर के उसने उस दिन झूठ की दीवार को गिरा दिया. अगर वो ऐसा न करती और उसी लालच के चलते सब कुछ छुपाती रहती तो शायद आज मैं कुछ और ही होता.

Source: ScoopWhoop
 

5. गायत्री

मेरे भाई ने तो मुझ पर WWE के सारे पैंतरे आज़माए हैं. मम्मी-पापा से मेरी शिकायत की है, मेरी चॉकलेट्स चुराई हैं और कहा है कि 'मुझे कचरे के डब्बे से उठाया गया था'. यही नहीं, उसके सामने आने पर वो मुझे मार भी देता था. लेकिन ये सब फिर भी ठीक था. भाई ने मुझे सबसे बड़ा झटका तब दिया जब उसने बताया कि सैंटा क्लॉस नहीं होता है! उस समय मैं सिर्फ़ 15 साल की थी. उस बात के लिए मैंने उसे आज तक माफ़ नहीं किया है.

Source: india-forums
 

6. जयंत

हुआ कुछ यूं था कि पापा ने नया म्यूज़िक प्लेयर लिया था. मैं दोस्तों के साथ पार्टी करने उस म्यूज़िक प्लेयर को लेकर चला गया. किसी कारण से वो ख़राब हो गया. पापा जब अपने काम से वापस आए तो दीदी ने म्यूज़िक प्लेयर के ख़राब होने की बात पापा से तब तक नहीं बोली जब तक पापा ने उसे तोड़ न दिया. मैं पिटाई से बच गया. अगले दिन मां ने भी दीदी को इस बात के लिए बहुत सुनाया था. उस वक़्त तो मुझे भी दीदी पर बहुत गुस्सा आया था, लेकिन आज वही यादें चेहरे पर मुस्कान और आंखों में नमी दे जाती हैं. थैंक यू मेरी बहन होने के लिए और मैं हर बार आपको ही अपनी बहन के रूप में भगवान से मांगने के लिए प्रार्थना करूंगा.

Source: conversationsforabetterworld
 

7. ईशा

मैं क्लास3 में थी और मेरा भाई 5th में. हर दिन स्कूल के बाद मैं और मेरा भाई, पैदल चल कर वापस घर आते थे. एक दिन उसने मुझे आर्डर दिया कि 'मेरा बैग बहुत भारी है. तुझे पकड़ना पड़ेगा.' मुझ नन्ही-सी जान को भरी दोपहरी में एक नहीं, दो-दो बैग पकड़ने पड़े. आज हम दोनों ही उस बात पर बहुत हंसते हैं कि वो मुझे कैसे बुली किया करता था.

Source: HT
 

8. विष्णु

मेरी बहन हम तीन भाई बहनों में सबसे छोटी है और हमारे संयुक्त परिवार की इकलौती लड़की भी. हमारे बाद पढ़ाई शुरू कर के वो हमसे पहले ग्रेजुएट और पोस्ट-ग्रेजुएट भी हो गई. पूरे परिवार की जान जैसे उसी में बसती है. बातूनी इतनी कि जैसे मुंह में मोटर फिट कर दिया गया हो. तेज़ इतनी कि उससे पार पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. दादा-दादी से लेकर नाना-नानी सारी बुआओं और मौसियों के बीच समान रूप से पसंद की जाने वाली. इकलौती होने की वजह से उसे हर जगह से गिफ्ट मिलते और हम मन-ही-मन कुढ़ते भी रहते हालांकि हम इसे जाहिर नहीं करते.
माहिर इतनी कि हर पर्व-त्योहार से पहले वो जुगाड़ कर लेती है कि उसे किससे क्या चाहिए? और हम हर बार कन्नी काटने और कुछ उसी से ऐंठने की फिराक़ में लगे रहते हैं. वो हमें हर बार माफ़ कर देती है कि जाओ बच्चू तुमसे न हो पायेगा. और हम मन-ही-मन सारा हिसाब चुकता करने की ठाने बैठे हैं.
अब फ़िर से रक्षाबंधन आ गया है, हम और वो हज़ारों किलोमीटर दूर हैं. उसने हमसे पता पूछ कर राखी भी भेज दी है और गिफ़्ट के लिए एक बार भी नहीं कहा. वो जानती है कि हम इतना ही कमा पाते हैं कि दर-बदर दिल्ली जैसे महानगर में किसी-किसी तरह गुज़र-बसर कर सकें. मगर हम भी कहे देते हैं कि एक-दिन तेरी सारी शिकायतें दूर कर देंगे. बस इतना ही.

Source: dnaindia
 

9. अनु

मेरा कोई सगा भाई नहीं. बस हम दो बहनें हैं. राखी के त्योहार से हमारा परिचय हो, इसलिए बचपन में ही बाबा-दादी ने चाचाओं को ही राखी बंधवाना शुरू करवा दिया, ये कह कर कि जब परिवार में कोई भाई हो, तो ये प्रथा बंद कर दी जाये. हम दोनों बहनें सुबह से तैयार हो कर ख़ुशी-ख़ुशी अपने चाचाओं को ही राखी बांध देते थे, और पैसे मिलने का इंतज़ार करते थे. वैसे कज़िन भाई बहुत थे. और सुबह से सबका आना-जाना लगा रहता था. वह दिन मुझे अब भी याद हैं, क्योंकि जॉइंट फैमिली में यही मज़ा था. सब हर छोटी-बड़ी खुशियों में एक साथ शामिल होते थे. फिर हमारे यहां हुआ एक भाई. चाचा-चाची की बेटियों और हमें मिला कर, पांच बहनों में एक अकेला. सबसे छोटा. और उसकी रक्षा जहां तक मुझे याद है, बहने ही करती थीं.

Source: mrpopat
 

10. सुमित

जब आपकी खुद की कोई बहन नहीं होती तो आपकी बहुत सारी बहनें होती हैं. चाचा से ले कर मामा की बेटियां आपकी कलाई पर राखी बांध कर रक्षाबंधन वाले वाली दिन आपकी बहन होने का फर्ज़ अदा करने चली आती हैं. पर इन सब रिश्तेदारी बहनों में एक बहन ऐसी है, जिसे सही मायने में अपनी बहन कह सकता हूं. वो है हिल्ली दीदी. स्कूल की वजह से बस गर्मी छुट्टियों के दौरान ही हम सब इकट्ठा हो पाते थे. दो चार घंटे शांत बैठने और एक दूसरे की भरपूर शक्ल देखने के बाद सारा घर हमारी मस्तियों और झगड़ों की आवाज़ से गूंज उठता था. घर में सबसे छोटा होने की वजह से सबसे ज़्यादा लाड़-प्यार के अलावा मार की कभी कमी नहीं हुई. कभी टेलीविज़न रिमोट के लिए लड़ना, कभी बोरिंग न्यूज़ को हटाकर कार्टून देखने के लिए लड़ने में मैं अपनी बहादुरी समझता था. एक बार दोपहर का खाना खाने के बाद रिमोट के लिए जब हमारा द्वंद युद्ध शुरू होने ही वाला था कि दीदी ने रिमोट अपने पास रख लिया. इस बार जब मैं अपनी बहादुरी दिखाने के लिए दोबारा रिमोट छीनने के लिए आगे बढ़ा तो दीदी का ज़ोरदार मुक्का पेट पर पड़ा, दिन में तारे दिखना किसे कहते हैं, उस दिन मालूम पड़ा. कसम से जान निकलने को हो गई थी. शायद वो छुट्टियां हम सब की बितायी आखरी छुट्टी थी. उसके बाद पढ़ाई और करियर की भाग दौड़ में इतना मशरूफ़ हो गये कि कभी मिलने का वक्त ही नहीं मिला. पर पिछले साल जब दीदी की जॉब गुड़गांव में लगी तो रक्षाबंधन पर वो घर आईं. राखी बांधने के बाद जब हम सब खाने-वाने से निपट कर हॉल में बैठे तो टेबल पर पड़े टी.वी का रिमोट देख कर हम दोनों मुस्कुरा दिए.

Source: indianexpress
 

11. राम

पिछले साल का रक्षाबंधन मेरे लिए सबसे यादगार रहा, क्योंकि उस रक्षाबंधन पर मैं घर से दूर रोहतक मैं था. लेकिन ये पर्व की ताकत ही होती है जो आपको अपने घर की तरफ़ सिर्फ़ इसलिए लेकर जाती है कि आप अपनी बहन से राखी बंधवा सकें. कुछ ऐसा ही मेरे साथ हुआ, रोहतक में मैं एक समाचार पत्र में कार्य कर रहा था जहां रक्षाबंधन पर छुट्टी तो होती ही नहीं थी. मेरे साथ काम करने वाले सहयोगियों को उस दिन इसलिए छुट्टी मिल गई थी कि वो पिछले कुछ सालों से रक्षाबंधन पर अपने घर नहीं जा पाए थे. खैर मेरा घर तो दिल्ली में ही था, तो मैंने सोच लिया था कि सुबह रूम से जल्दी निकल कर घर पहुंच जाऊंगा और शाम को वापस रोहतक आ जाऊंगा. लेकिन रक्षाबंधन पर घर आने की बात मैंने अपनी बहन को नहीं बताई थी, क्योंकि इसका भी अपना अलग मज़ा होता है. जब मैं रक्षाबंधन के दिन सुबह-सुबह घर पहुंचा तो मुझे देख कर मेरी बहन काफ़ी खुश हुई. उस पल की खुशी केवल भाई-बहन ही समझ सकते हैं. खासकर वो लोग जो लंबे समय से किसी कारणवश अपनी बहन से दूर होते हैं और रक्षाबंधन पर ही मिलते हैं.

Source: india-forums
 

12. आंचल

मेरे भाई ने मुझे बहुत परेशान किया है. स्कूल में मैं उसका बैग पैक करती थी, उसके जूते पॉलिश करती थी और यूनिफार्म अरेंज करती थी. वो उसे USB (यूनिफार्म, शूज़ और बैग) कहता था. मुझे उसका टाईमटेबल देख कर उसकी फिज़िक्स, केमिस्ट्री और दूसरी किताबें भी रखनी होती थीं. उसकी किताबों को देख कर मैं इतना डर गयी थी कि साइंस लेने की बजाय मैंने कॉमर्स चुना.

Source: boloji
 

13. ईशान

मेरी बहन मुझसे 12 साल बड़ी है और उसने मेरी देखभाल मां की तरह ही की है. बचपन में मैं अपने बर्थडे पर सबसे ज़्यादा excited रहता था. मेरी ज़िद रहती थी कि चाहे कुछ भी हो जाए, मेरा केक रात के 12 बजे ही कटेगा. एक बार किसी कारणवश पापा-मम्मी मेरी बर्थडे पर केक नहीं ला पाये. बस फिर क्या था, मैंने रोना-धोना, हंगामा मचा दिया. दीदी से ये देखा नहीं गया और उसने पापा को अपने साथ चलने को कहा. न जाने कहां से, 12 बजने से पहले मेरा बर्थडे केक, मेरे सामने था. मैंने तो ख़ुशी-ख़ुशी अपना केक काटा और सो गया, लेकिन अब सोचता हूं, तो लगता है कि दीदी ने मेरी ख़ुशी के लिए कितना कुछ किया है. इस रक्षाबंधन पर मैं घर नहीं जा पाया, लेकिन दीदी की राखी ज़रूर आ गयी है. मां से बढ़ कर प्यार करने के लिए शुक्रिया.

Source: mid-day
कुछ रिश्ते इतने अनमोल होते हैं कि उन भावनाओं को शब्दों में पिरोना थोड़ा मुश्किल हो जाता है. भाई-बहन का रिश्ता भी कुछ ऐसा ही होता है. थोड़ी धूप-थोड़ी छांव, थोड़ी मस्ती, थोड़े प्यार भरे घाव. ग़ज़बपोस्ट की तरफ़ से आप सभी को रक्षाबंधन की ढेरों शुभकामनाएं.

Feature Image Source: cravecookclick

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