भारतीय रेल का अजब खेल!, दो महीनों में सिर्फ़ एक बार होती कंबलों की सफ़ाई

रेल बजट 2016 की घोषणा की जा चुकी है. कई वायदों को पूरा भी किया जा चुका है, कई नई सुपरफास्ट, सेमी बुलेट, बुलेट ट्रेनों की घोषणाएं हो चुकी है. यात्रियों की सुलभता के लिए ट्रेन में उत्तम भोजन, फ्री वाई-फाई, एफएम , एलसीडी जैसी सुविधाओं की व्यवस्था भी की जा चुकी है. लेकिन... बात जब साफ़-सफाई की आ है तो भारतीय रेल 10 साल पीछे चली जाती है. आइए, आपको एक ऐसी जानकारी से रूबरू करवाते हैं जिसे जान कर आप भी कहेंगे- प्रभु कुछ तो करो!
वैसे तो भारतीय रेलों में साफ-सफाई के लिए ख़ास इंतजाम किया गया है, इसके लिए अलग से व्यवस्था भी की गई है. लेकिन ट्रेनों में रेल यात्रियों को मिलने वाले चादरों, तकियों और कंबलों से बदबू आने की शिकायत निरंतर आती रहती है. इस पर ना तो सरकार अभी तक कुछ कह रही है और ना ही रेलवे बोर्ड.

तकिए के खोल की सफाई रोज होती है

रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा के अनुसार चादरों, तकियों के खोलों की सफ़ाई प्रतिदिन होती है. इसके लिए एक संस्था है, जो तत्परता के साथ काम करती है.

दो महीने में एक बार कंबल की धुलाई होती है

संसद में प्रश्न का जवाब देते हुए रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा कहते हैं कि कंबलों की धुलाई दो महीने में एक बार की जाती है.

हामिद अंसारी का सुझाव

उप राष्ट्रपति व राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी ने कहा कि अपना बिस्तरबंद ले जाने का पुराना चलन ही अच्छा था. इससे आम आदमी अपनी साफ़-सफाई का इंतजाम खुद से कर लेते थे.

मनोज सिन्हा ने सहमत्ति दी

हामिद अंसारी के सुझाव पर अपनी सहमत्ति देते हुए सिन्हा ने कहा कि 'यह अच्छी सलाह है और रेलवे को कोई समस्या नहीं होगी अगर यात्री उस चलन को स्वीकार करना चाहते हैं'.

साफ़-सफ़ाई क्यों ज़रूरी है

गंदगी से बीमारी होती है. आजकल वातावरण में ना जाने कितने ऐसे कीटाणु और विषाणु हैं, जो मानव शरीर के लिए ख़तरनाक है और तरह-तरह की बीमारियां फैलाते हैं. ऐसे में इन रोगों से बचने के लिए साफ़-सफाई बहुत ही जरूरी है. हम लोगों को ऐसे कंबलों का इस्तेमाल बंद कर देना चाहिए. इससे हमारे शरीर में ना सिर्फ़ भयानक रोग उत्पन्न हो सकते है, बल्कि हमारी जान भी जा सकती हैं.
News Source: Ndtv 

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