>> 21 ऐसी चीज़ें जिन्हें 90 के दशक में पैदा हुआ हर बच्चा आज मिस करता है
बीता हुआ समय हमें हमेशा अच्छा लगता है, चाहे वो अच्छा रहा हो या फिर
दुश्वारियों से भरा. और यदि वह बीता हुआ समय हमारा बचपन और 90 के दशक के
दिन हो तो फिर क्या कहने!. जब शाम को खेलने के लिए दोस्त खोजने नहीं पड़ते
थे, जब चिट्ठियां ही संदेश भेजने का जरिया हुआ करती थीं. जब टेक्नॉलॉजी
हमारे बेडरूम तक नहीं घुसा था. जब हमारे पास दूसरों और ख़ुद के लिए
पर्याप्त समय था. हम दूरदर्शन से ही पूरी तरह संतुष्ट थे. आज वह समय बेशक
बीत चुका है, मगर हम आज भी उन बचपन की यादों से बाहर नहीं आना चाहते.
यहां हम ख़ास आपके लिए लेकर आए हैं 90 के दशक की 20 ऐसी चीज़ें जो आपको फिर से आपके बचपन में ले जाने की गारंटी हैं...
1. हर रविवार की सुबह ही-मैन (He-Man) को पढ़ने के लिए अख़बार खोजना.
ही मैन और मास्टर्स ऑफ यूनिवर्स वो कुछ ख़ास चीज़ें थीं जिन्हें पढ़ने के लिए हम आंखें मलते हुए भी उठ जाया करते थे, आख़िर बाद में दोस्तों को जाकर उसकी कहानी जो सुनानी होती थी.
आज भले ही कितने ही सुपरहीरोज़ आ चुके हों, मगर शक्तिमान हमेशा हमारी पहली पसंद रहेगा. आख़िर वह दोस्त पहले और सुपरहीरो बाद मेंं था, और Sorry Shaktiman को भला कोई कैसे भूल सकता है?
जंगलबुक और दानासुर मेंं से फेवरेट तय करने में मुझे बड़ी परेशानी होती है, मैं तो दोनों को ही रखना चाहूंगा. बगीरा और बल्लू के साथ-साथ शेर खान के आतंक को कोई कैसे भूल सकता है? मगर हम सभी छिप्पकली के नाना-दानासुर को भी बेइंतहा चाहते थे.
हमारे पास आज की तरह उतने ऑप्शन्स नहीं थे, मगर जो कुछ भी था हम उसका पूरा मज़ा लेते थे.
इसे देखने के बाद हम ख़ुद को हिंदी में पारंगत मानने लगे थे, और हम कैसे-कैसे आलोचनात्मक नज़रिया विकसित कर बैठे वो भी सोचने वाली ही बात है. शुक्रिया बी.आर.चोपड़ा साब
उस दौर के सारे लड़के चंद्रकांता को अपनी गर्लफ्रेंड बनाना चाहते थे, और मैंं भी उनमें से एक था.
उसकी पोटली से पुतलियां निकलती थींं, और किस्सागोई का ऐसा अद्भुत नज़ार फिर कभी देखने को नहीं मिला...
हम इन सीरियल्स से कितना डरा करते थे, मगर इनका रोमांच भी तो अजीब हुआ करता था...
किराये पर इन कॉमिक्स को लाना और फिर घंटे भर में ही उन्हें पढ़ कर पहुंचाने चले जाना भी क्या पागलपना था. सुपर कमांडो ध्रुव, बांकेलाल, नागराज और डोगा के साथ बीतते दिन भी क्या दिन थे.
पारले जी बिस्किट की एक पैकेट, 11 रुपये से लेकर मैंने तो cosco गेंद जीतने तक मैंच खेला है, आप अपना बताइए?
पानी और कीचड़ के साथ-साथ खेलना दुनिया के सबसे ख़ूबसूरत लम्हों मेंं से एक है.
आखिर लुक्का-छिप्पी के दौरान ही तो आप अपने सम-वन स्पेशल से सट-सट छिप सकते थे...
मां-बाबूजी सोचते थे कि हमें पनिशमेंट मिली है और हम फूलटू मज़े में रहते थे.
हम एक सीटिंग में तीन-तीन और कभी-कभी चार फिल्में भी देख लिया करते थे...
उन दिनों कुकुरमुत्तों की तरह उगे मॉल्स और सुपरमार्केट्स नहीं थे. और किसी शांत सी जगह या पार्क में साथ-साथ लंच करना ही सबसे मज़ेदार चीज़ हुआ करती थी.
निरुला हमारे आस-पास का सबसे बेस्ट फूड ज्वाइंट था और हम फूलटू हैप्पी थे...
और हम ख़ुद में फूले नहीं समाते थे...
उन दिनों न हमें कोलस्ट्रॉल का डर था न पेट खराब होने का. समोसे और जलेबियां हम छक कर खाया करते थे
आइसक्रीम वाला हमारा सबसे बढ़िया दोस्त था, और वो हमको तो कई बार बिना पैसे के भी आइसक्रीम दे दिया करता था.
तो भैया कहो, कुछ याद आया
21. और फिर हमारे जूते चमकाने के लिए वो किवी और चेरी की पॉलिस की बात ही कुछ और थी...
वो स्पोर्ट्स सूज़ का दौर नहीं था, मगर जो कुछ भी था. हमारे दिल के पास था. अपने जूते को दूसरे के जूते के कंपटीशन में चमकाना कोई आसान काम थोड़े न था.
यहां हम ख़ास आपके लिए लेकर आए हैं 90 के दशक की 20 ऐसी चीज़ें जो आपको फिर से आपके बचपन में ले जाने की गारंटी हैं...
1. हर रविवार की सुबह ही-मैन (He-Man) को पढ़ने के लिए अख़बार खोजना.
ही मैन और मास्टर्स ऑफ यूनिवर्स वो कुछ ख़ास चीज़ें थीं जिन्हें पढ़ने के लिए हम आंखें मलते हुए भी उठ जाया करते थे, आख़िर बाद में दोस्तों को जाकर उसकी कहानी जो सुनानी होती थी.
Source: deviantart
2. सुपरहीरोज़ की बात हो तो हम-सभी के फेवरेट शक्तिमान का जिक्र तो बनता है बॉस...आज भले ही कितने ही सुपरहीरोज़ आ चुके हों, मगर शक्तिमान हमेशा हमारी पहली पसंद रहेगा. आख़िर वह दोस्त पहले और सुपरहीरो बाद मेंं था, और Sorry Shaktiman को भला कोई कैसे भूल सकता है?
Source: time2study
3. मोगली और उसकी जंगलमंडली के साथ-साथ दानासुर को भला कोई कैसे भूल सकता है...जंगलबुक और दानासुर मेंं से फेवरेट तय करने में मुझे बड़ी परेशानी होती है, मैं तो दोनों को ही रखना चाहूंगा. बगीरा और बल्लू के साथ-साथ शेर खान के आतंक को कोई कैसे भूल सकता है? मगर हम सभी छिप्पकली के नाना-दानासुर को भी बेइंतहा चाहते थे.
Source: dailymotion
4. सिनेमा पसंद करने वालों के लिए रविवार की शाम का पूरे सप्ताह तक इंतज़ार करना, और उनकी पसंदीदा फिल्मोंं का चलाया जाना कोई कैसे भूल सकता है...हमारे पास आज की तरह उतने ऑप्शन्स नहीं थे, मगर जो कुछ भी था हम उसका पूरा मज़ा लेते थे.
Source: ndtv
5. महाभारत के बाद इतवार कभी भी वैसा सुनहरा नहीं रहा...इसे देखने के बाद हम ख़ुद को हिंदी में पारंगत मानने लगे थे, और हम कैसे-कैसे आलोचनात्मक नज़रिया विकसित कर बैठे वो भी सोचने वाली ही बात है. शुक्रिया बी.आर.चोपड़ा साब
Source: divyakataksham
6. और उस दौर में यदि चंद्रकांता का जिक्र न हो तो शायद यह बेईमानी होगी...उस दौर के सारे लड़के चंद्रकांता को अपनी गर्लफ्रेंड बनाना चाहते थे, और मैंं भी उनमें से एक था.
Source: youtube
7. या फिर पोटली बाबा की कहानियां...उसकी पोटली से पुतलियां निकलती थींं, और किस्सागोई का ऐसा अद्भुत नज़ार फिर कभी देखने को नहीं मिला...
Source: youtube
8. और फिर विक्रम-बैतैाल, हातिमताई के साथ-साथ अली बाबा और चालीस चोर तो था ही...हम इन सीरियल्स से कितना डरा करते थे, मगर इनका रोमांच भी तो अजीब हुआ करता था...
Source: chinnimamakathalu
9. गर्मी की छुट्टियां फिर कभी वैसी नहीं रही जैसी राज कॉमिक्स के किरदारों के साथ हुआ करती थीं.किराये पर इन कॉमिक्स को लाना और फिर घंटे भर में ही उन्हें पढ़ कर पहुंचाने चले जाना भी क्या पागलपना था. सुपर कमांडो ध्रुव, बांकेलाल, नागराज और डोगा के साथ बीतते दिन भी क्या दिन थे.
Source: realdude
10. शाम होते ही बल्ला ले कर दौड़ पड़ना और छुट्टियों में तो धूप की भी परवाह न करना आदत से ज्यादा नशा हो गया था.पारले जी बिस्किट की एक पैकेट, 11 रुपये से लेकर मैंने तो cosco गेंद जीतने तक मैंच खेला है, आप अपना बताइए?
Source: zimbio
11. बारिश होने पर हम समय चैनल सर्फिंग और चैटिंग के बजाय फुटबॉल के साथ बिताया करते थे.पानी और कीचड़ के साथ-साथ खेलना दुनिया के सबसे ख़ूबसूरत लम्हों मेंं से एक है.
Source: wikipedia
12. शाम होते ही मोहल्ले और परिवार के सारे बच्चे लुक्का-छिप्पी और धप्पा में व्यस्त हो जाते थे.आखिर लुक्का-छिप्पी के दौरान ही तो आप अपने सम-वन स्पेशल से सट-सट छिप सकते थे...
Source: vimeo
13. और कई बार जब हमें बाहर नहीं जाने दिया जाता था तो सुपर मारियो, कौन्ट्रा जैसे वीडियो गेम्स ही हमारे सबसे अच्छे साथी हुआ करते थे.मां-बाबूजी सोचते थे कि हमें पनिशमेंट मिली है और हम फूलटू मज़े में रहते थे.
Source: androidpit
14. और फिर फिल्म देखने के लिए हमारे पास किराए की वी.सी.आर हुआ करताी थी.हम एक सीटिंग में तीन-तीन और कभी-कभी चार फिल्में भी देख लिया करते थे...
Source: dailydot
15. उन दिनोंं फैमिली पिकनिक्स साथ समय बिताने का सबसे बढ़िया साधन थीं.उन दिनों कुकुरमुत्तों की तरह उगे मॉल्स और सुपरमार्केट्स नहीं थे. और किसी शांत सी जगह या पार्क में साथ-साथ लंच करना ही सबसे मज़ेदार चीज़ हुआ करती थी.
Source: flickr
16. बाहर डिनर करने के हमारे पास ज़्यादा ऑपशन्स नहीं थे, मगर जो कुछ भी था हम उसमें ही ख़ुश थे.निरुला हमारे आस-पास का सबसे बेस्ट फूड ज्वाइंट था और हम फूलटू हैप्पी थे...
Source: freelisthub
17. किसी लकी दिन पर हमें मेला या फिर मीना बाज़ार जाने का मौका मिल जाता था.और हम ख़ुद में फूले नहीं समाते थे...
Source: appugharpune
18. य़ा फिर बाबूजी के साथ जाकर हलवाई की दुकान से समोसे लेकर आना और उसे खट्टी-मीठी चटनी के साथ खाना कौन भूल सकता है?उन दिनों न हमें कोलस्ट्रॉल का डर था न पेट खराब होने का. समोसे और जलेबियां हम छक कर खाया करते थे
Source: maierandmaierphotography
19. कॉलोनी के सारे दोस्त पैसा जुटा कर आइसक्रीम वाले पर हमला बोल देते थे...आइसक्रीम वाला हमारा सबसे बढ़िया दोस्त था, और वो हमको तो कई बार बिना पैसे के भी आइसक्रीम दे दिया करता था.
Source: heavensfamily
20. कैसेट में अपने पसंद के गाने भरवाना और उन्हें किसीू को गिफ्ट करने की बात ही कुछ और थी.तो भैया कहो, कुछ याद आया
21. और फिर हमारे जूते चमकाने के लिए वो किवी और चेरी की पॉलिस की बात ही कुछ और थी...
वो स्पोर्ट्स सूज़ का दौर नहीं था, मगर जो कुछ भी था. हमारे दिल के पास था. अपने जूते को दूसरे के जूते के कंपटीशन में चमकाना कोई आसान काम थोड़े न था.