>>रक्षाबंधन स्पेशल - भाई बहन से जुरे कुछ खट्टे-मीठे लम्हों की कहानी
भाई-बहन
का रिश्ता हमारी हथेलियों की लकीरों में लिखा हुआ आता है. मतलब ये कि हम
अपना भाई या बहन खुद नहीं चुनते, बस किस्मत की बात होती है. इसीलिए, हर
किसी का अनुभव भी अलग होता है. कुछ भाई-बहनों के बीच बहुत प्यार होता है तो
कुछ में बहुत तकरार होती है. तो हम ने भी कुछ लोगों से अपने किस्से बयां
करने को कहा. तो पढ़िए, नोक-झोंक, प्यार, हंसी और ख़ुशी के बंधन से सजी, कुछ
ऐसी ही कहानियां.
माहिर इतनी कि हर पर्व-त्योहार से पहले वो जुगाड़ कर लेती है कि उसे किससे क्या चाहिए? और हम हर बार कन्नी काटने और कुछ उसी से ऐंठने की फिराक़ में लगे रहते हैं. वो हमें हर बार माफ़ कर देती है कि जाओ बच्चू तुमसे न हो पायेगा. और हम मन-ही-मन सारा हिसाब चुकता करने की ठाने बैठे हैं.
अब फ़िर से रक्षाबंधन आ गया है, हम और वो हज़ारों किलोमीटर दूर हैं. उसने हमसे पता पूछ कर राखी भी भेज दी है और गिफ़्ट के लिए एक बार भी नहीं कहा. वो जानती है कि हम इतना ही कमा पाते हैं कि दर-बदर दिल्ली जैसे महानगर में किसी-किसी तरह गुज़र-बसर कर सकें. मगर हम भी कहे देते हैं कि एक-दिन तेरी सारी शिकायतें दूर कर देंगे. बस इतना ही.
1. राज
मुझे याद है कि हमारे स्कूल में कई मारवाड़ी लड़के पढ़ते थे और ज़्यादातर लड़कियां उन्हें ही राखी बांधा करती थीं. क्यों? क्योंकि उनके पास सबसे ज़्यादा पैसे होते थे! कुछ लड़कों को तो हम 'Brother India' के नाम से भी बुलाते थे.Source: PTI
2. अनुजा
मेरे पास कई सारी किताबों का ढेर है क्योंकि हर राखी मेरा भाई मुझे पैसों की जगह किताबें देता था. उसका मानना था कि पैसे खर्च हो जायेंगे लेकिन किताबें हमेशा काम आएंगी.Source: pocketcultures
3. रेमा
हमारे स्कूल में रक्षाबंधन के दिन बच्चों की घिग्घी बंध जाती थी, क्योंकि हमें राखी पर भाई-बहन बनाना और राखी पहनाना मना था. और ये निर्देश स्कूल डायरी में लिखा था. पता नहीं क्यों?Source: rakshabandhanwishes2015
4. प्रियोदत्त
मैं उम्र में छोटा होने के साथ-साथ बहुत खुराफ़ाती था. मेरी बहन मुझसे पांच साल छोटी है. 8वीं क्लास के दौरान मैंने अपने कुछ दोस्तों के साथ स्कूल से बंक मारना शुरू कर दिया था. यशस्वी (मेरी बहन का नाम) को मुझे अपनी साइकिल से ले कर स्कूल आना और जाना पड़ता था. इसीलिए आधी छुट्टी में स्कूल से भाग जाने पर मैं पूरी छुट्टी होते ही स्कूल के गेट पर आ जाता और साइकिल के पीछे उसे बैठाकर घर ले जाता. वो हमेशा पूछती थी कि 'पिया (मेरा घर का नाम) तू आधी छुट्टी में कहां चला जाता है?' मेरे पास भी मुक्कमल जवाब होता था, 'बहन...मैं तेरे लिए चीज़ लेने जाता हूं, मीठी-मीठी चीज़' और उसके हाथ पर जामुन रख देता जो मैं एक सरदार के खेत से चोरी-छुपे तोड़ कर लाता था. वो बहुत खुश होती. बहुत दिनों तक ऐसा चलता रहा. इन दिनों मेरी पढ़ाई प्रभावित हो रही थी. मेरी संगत भी काफ़ी ग़लत हो रही थी, लेकिन एक दिन किसी कारणवश मैं जामुन नहीं ला पाया. उस दिन यशस्वी ने घर पर मां को सब कुछ सच-सच बता दिया. मां ने मेरी जो कुटाई की उसके बाद कभी मैं स्कूल से नहीं भागा. उन लड़कों की तरफ़ से ध्यान हटा कर पढ़ने-लिखने लगा. यशस्वी जानती थी कि सुबह स्कूल जाते वक़्त मैं उससे उस मार का बदला लूंगा पर फ़िर भी हिम्मत कर के उसने उस दिन झूठ की दीवार को गिरा दिया. अगर वो ऐसा न करती और उसी लालच के चलते सब कुछ छुपाती रहती तो शायद आज मैं कुछ और ही होता.Source: ScoopWhoop
5. गायत्री
मेरे भाई ने तो मुझ पर WWE के सारे पैंतरे आज़माए हैं. मम्मी-पापा से मेरी शिकायत की है, मेरी चॉकलेट्स चुराई हैं और कहा है कि 'मुझे कचरे के डब्बे से उठाया गया था'. यही नहीं, उसके सामने आने पर वो मुझे मार भी देता था. लेकिन ये सब फिर भी ठीक था. भाई ने मुझे सबसे बड़ा झटका तब दिया जब उसने बताया कि सैंटा क्लॉस नहीं होता है! उस समय मैं सिर्फ़ 15 साल की थी. उस बात के लिए मैंने उसे आज तक माफ़ नहीं किया है.Source: india-forums
6. जयंत
हुआ कुछ यूं था कि पापा ने नया म्यूज़िक प्लेयर लिया था. मैं दोस्तों के साथ पार्टी करने उस म्यूज़िक प्लेयर को लेकर चला गया. किसी कारण से वो ख़राब हो गया. पापा जब अपने काम से वापस आए तो दीदी ने म्यूज़िक प्लेयर के ख़राब होने की बात पापा से तब तक नहीं बोली जब तक पापा ने उसे तोड़ न दिया. मैं पिटाई से बच गया. अगले दिन मां ने भी दीदी को इस बात के लिए बहुत सुनाया था. उस वक़्त तो मुझे भी दीदी पर बहुत गुस्सा आया था, लेकिन आज वही यादें चेहरे पर मुस्कान और आंखों में नमी दे जाती हैं. थैंक यू मेरी बहन होने के लिए और मैं हर बार आपको ही अपनी बहन के रूप में भगवान से मांगने के लिए प्रार्थना करूंगा.Source: conversationsforabetterworld
7. ईशा
मैं क्लास3 में थी और मेरा भाई 5th में. हर दिन स्कूल के बाद मैं और मेरा भाई, पैदल चल कर वापस घर आते थे. एक दिन उसने मुझे आर्डर दिया कि 'मेरा बैग बहुत भारी है. तुझे पकड़ना पड़ेगा.' मुझ नन्ही-सी जान को भरी दोपहरी में एक नहीं, दो-दो बैग पकड़ने पड़े. आज हम दोनों ही उस बात पर बहुत हंसते हैं कि वो मुझे कैसे बुली किया करता था.Source: HT
8. विष्णु
मेरी बहन हम तीन भाई बहनों में सबसे छोटी है और हमारे संयुक्त परिवार की इकलौती लड़की भी. हमारे बाद पढ़ाई शुरू कर के वो हमसे पहले ग्रेजुएट और पोस्ट-ग्रेजुएट भी हो गई. पूरे परिवार की जान जैसे उसी में बसती है. बातूनी इतनी कि जैसे मुंह में मोटर फिट कर दिया गया हो. तेज़ इतनी कि उससे पार पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. दादा-दादी से लेकर नाना-नानी सारी बुआओं और मौसियों के बीच समान रूप से पसंद की जाने वाली. इकलौती होने की वजह से उसे हर जगह से गिफ्ट मिलते और हम मन-ही-मन कुढ़ते भी रहते हालांकि हम इसे जाहिर नहीं करते.माहिर इतनी कि हर पर्व-त्योहार से पहले वो जुगाड़ कर लेती है कि उसे किससे क्या चाहिए? और हम हर बार कन्नी काटने और कुछ उसी से ऐंठने की फिराक़ में लगे रहते हैं. वो हमें हर बार माफ़ कर देती है कि जाओ बच्चू तुमसे न हो पायेगा. और हम मन-ही-मन सारा हिसाब चुकता करने की ठाने बैठे हैं.
अब फ़िर से रक्षाबंधन आ गया है, हम और वो हज़ारों किलोमीटर दूर हैं. उसने हमसे पता पूछ कर राखी भी भेज दी है और गिफ़्ट के लिए एक बार भी नहीं कहा. वो जानती है कि हम इतना ही कमा पाते हैं कि दर-बदर दिल्ली जैसे महानगर में किसी-किसी तरह गुज़र-बसर कर सकें. मगर हम भी कहे देते हैं कि एक-दिन तेरी सारी शिकायतें दूर कर देंगे. बस इतना ही.