>> इन 5 महिलाओं ने अपने अदद प्रयास से बदली है गांवों की तस्वीर और तकदीर
बात कर रहे हैं झारखंड की, एक ऐसा राज्य जहां लिंगानुपात काफ़ी गिरा हुआ
है, जहां प्राकृतिक संपदा को बचाने के लिए लंबे समय तक लोग संघर्ष से
जूझते रहे हैं. इस पसो-पेश के बाद फ़िलहाल झारखंड के गाम्रीण इलाकों में
ख़ासा बदलाव देखने को मिल रहा है. इस बात का प्रमाण हैं ये पांच महिलाएं,
जिन्होंने गांव की तस्वीर बदलने के साथ तकदीर बदलने की ओर कदम बढ़ाया.
तस्वीर में जो महिला आपको धान लगाते दिख रही हैं उनका ही नाम रूपनी
तिड़ू है. बिचना पंचायत की सरपंच हैं. खेत-खलिहान के कामों के साथ-साथ वो
ग्रामीण कार्यों को भी बड़ी मुस्तैदी के साथ करती हैं. गांव के लोगों की
ज़रूरतों को सरकारी अधिकारियों तक पहुंचाने से ले कर लोगों की मांगे भी
तत्परता से आगे रखती हैं.
तो देखा आपने... समाज को गति देने में इनका भी योगदान है. गांव-शहर मात्र एक बसी बस्ती के अलावा कुछ नहीं होता. असल फ़र्क तो इंसान की सोच से पड़ता है. उसके व्यक्तित्व का निर्माण उसकी सोच से ही हो पाता है. और इन महिलाओं ने ये साबित कर दिया है कि इनकी सोच बड़ी है, चाहे ये रह छोटी जगह पर रही हों.
Source: bbc
1. रूपनी तिड़ू, खूंटी
तस्वीर में जो महिला आपको धान लगाते दिख रही हैं उनका ही नाम रूपनी
तिड़ू है. बिचना पंचायत की सरपंच हैं. खेत-खलिहान के कामों के साथ-साथ वो
ग्रामीण कार्यों को भी बड़ी मुस्तैदी के साथ करती हैं. गांव के लोगों की
ज़रूरतों को सरकारी अधिकारियों तक पहुंचाने से ले कर लोगों की मांगे भी
तत्परता से आगे रखती हैं.2. कलावती देवी, रामगढ़
कलावती जी ने बी.ए. तक शिक्षा ग्रहण कर रखी है. आंगनबाड़ी सेविका होने के साथ-साथ मनरेगा और वृद्धापेंशन संबंधी दिक्कतों के लिए भी आगे आती रही हैं. इन्होंने सरकार की ओर से मिलने वाले अनुदान को आधार कार्ड से जोड़ने की पहल की है.3. अनिता देवी, गेतलसूद
इस गांव की पंचायत को भारत सरकार ने पॉयलट प्रोजेक्ट के लिए चुना है. ग्राम सभा की ओर से महिला सशक्तिकरण, और लोगों को मज़दूरी संबंधी कार्य दिलवाने के लिए भी इनका कार्य सराहनीय रहा है.4. अनिता बा
नक्सलवादी गतिविधियों से प्रभावित ज़िला सिमडेगा के करसई में अनिता बा को लोग उनके काम की बदौलत जानते हैं. अनिता शादी हो कर जब इस गांव में आई तो आदिवासियों के बुरे हालातों ने उन्हें सोचने पर मज़बूर कर दिया. उन्होंने लोगों के हालात सुधारने के लिए स्वयं सेवी संस्थाओं पर जोर दिया. आज इस प्रखंड में लगभग 300 से ज़्यादा स्वयं सेवी संस्थाएं कार्य कर रही हैं. अभी हाल ही में यहां शौचालय निर्माण अभियान ने गति पकड़ रखी है.5. रोजदानी तिग्गा
नर्स के पेशे से रिटायर होने के पश्चात रोजदानी अपने गांव इटकी में पानी संबंधी दिक्कतों को दूर करने के लिए पहल करने लगी. गांव के लोग उनका साथ देते गये. गांव की औरतें इन्हें जलसहिया कहकर पुकारती हैं. लोगों के घर जा कर पानी देने का कार्य अपनी टीम के साथ करती हैं.तो देखा आपने... समाज को गति देने में इनका भी योगदान है. गांव-शहर मात्र एक बसी बस्ती के अलावा कुछ नहीं होता. असल फ़र्क तो इंसान की सोच से पड़ता है. उसके व्यक्तित्व का निर्माण उसकी सोच से ही हो पाता है. और इन महिलाओं ने ये साबित कर दिया है कि इनकी सोच बड़ी है, चाहे ये रह छोटी जगह पर रही हों.
Source: bbc