>> 11 ऐसी चीजें, जिनकी वजह से आज भी हमारा दिल शहर के बजाय गांव के लिए धड़कता है
हमारे देश की आत्मा गांव में रहती है, चलो गांव की ओर, गांव को लौटो,
जैसी कहावतें तो हम सभी ने सुनी और कही होगी मगर हकीकत में गांव की धीमी
रफ्तार के विपरीत शहर में मिल रही बेहतर शिक्षा, रोजगार की दरकार हमें वहां
से पलायन को मजबूर करती रही है. इन सबके बावजूद कुछ तो है जो गांव लौटने
को मजबूर करता है, यहां मौजूद हैं वो 11 वजहें.
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5. ट्रैफिक और चिल्ल-पों से राहत
शहर की ट्रैफिक से बाहर निकल कर जितनी राहत महसूस होती है उसे आप चाहे कितने भी पैसें खर्च करलें नहीं पा सकते और इतनी शांति कि आप गिरते हुए पानी की बूंद तक को साफ-साफ सुन सकते हैं.
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1.मिट्टी की खुशबू
मई-जून की आग उगलती गर्मी के बाद की वो पहली बारिश, और उस बारिश के दौरान मिट्टी की वो “सौंधी खुशबू” जिसके नाक में पड़ते ही मन करता है कि मिट्टी उठा के खा ली जाए बस. अब शहरों और अपार्टमेंटों में रहने वाले लोग तो बस इसकी कल्पना ही कर सकते हैं.Source: alphacoders.com
2.गांव के बाग-बगीचे और हरियाली
गांव और शहर में सबसे बड़ा अंतर वहां की हरियाली और बाग-बगीचे ही हैं...और फिर वो लहलहाते खेत और नजदीक की ताल-तलैया तो रही-सही कसर भी पूरी कर देते हैं. आखिर गांव छूटने के बाद सबसे ज्यादा मिस किए जाने वाली चीजों में अव्वल तो वो आम-जामुन के पेड़ ही हैं न.Source: wordpress.com
3.यारों की यारी
दोस्त हम अमूमन हर जगह बना लेते हैं, चाहे वो स्कूल-कॉलेज हों या फिर ऑफिस मगर गांव के वो सबसे पहले दोस्तों की जगह कोई नहीं ले सकता, इसलिए ही तो उन्हें “चड्डी दोस्त” का तमगा दिया जाता है.Source: scoopwhoop.com
4. खाने-पीने की सुविधा
शहर में चाहे खाने-पीने को कितनी भी वैराइटी मिलती हों मगर पेट आज भी देसी चुल्हे पर बनी रोटी से ही भरता है और वो भी प्रकृति के इतने नजदीक रह कर. ऊपर से पीने के लिए दूध, लस्सी और छाछ हों और वो भी बिना किसी मिलावट के तो फिर क्या कहने.Source: facebook.com
5. ट्रैफिक और चिल्ल-पों से राहत
शहर की ट्रैफिक से बाहर निकल कर जितनी राहत महसूस होती है उसे आप चाहे कितने भी पैसें खर्च करलें नहीं पा सकते और इतनी शांति कि आप गिरते हुए पानी की बूंद तक को साफ-साफ सुन सकते हैं.
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6. धूंआ-धक्कड़ की जगह साफ-सुथरा वातावरण
शहर में चारो तरफ धूल और धूंआ-धक्कड़ का साम्राज्य और ठंड के बगैर, यहां कोहरे के साथ मिलकर बनने वाला “स्मौग” तो बस जानलेवा ही होता है, वहीं गांव की वो ऑक्सीजन वाली ठंडी हवा जब चेहरे को छूती है उस अहसास को शहर में तो पैसे देकर भी नहीं खरीदा जा सकता.Source: pghardy.net
7. रिश्तों का वो अपनापन
गांव और शहर के बीच का सबसे बड़ा फर्क वहां के रिश्तों के बीच की बची गर्माहट ही तो है जो तमाम दिक्कतों के बावजूद हमें गांवो कि ना सिर्फ याद दिलाती है बल्कि वहां जाने को भी बाध्य करती हैं. आखिर दादा-दादी और बड़ी अम्मा वहीं तो रहते हैं क्योंकि संयुक्त परिवार आज भी वहां की हकीकत है.Source: wordpress.com
8. सूरज का उगना और डूबना
आज के इस भागदौड़ भरी शहरी ज़िदगी में सुबह-शाम का तो पता ही नहीं चलता और आज सनराइज-सनसेट देखने के लिए लोग सैंकड़ों किलोमीटर की ड्राइविंग करके कहीं पहुंचते हैं मगर गांव में आज भी ये नजारे बिना किसी खर्च के दिख जाते हैं.Source: wordpress.com
9. खुले आसमान के नीचे बिताई गई वो रातें
जब नींद ना आ रही हो तो तारे गिनने की कहावत तो सबने सुनी होगी मगर ये सौभाग्य सिर्फ और सिर्फ गांव वालों को ही प्राप्त है, क्योंकि शहर में रहने वालों को छत तो नसीब हो सकती है मगर वो चांद-तारों सहित आसमान तो बस सपने में ही देखने की चीज रह गई लगती है.Source: bullfax.com
10. गांव-कस्बों में लगने वाले मेले
आज शहर में चारो तरफ मॉल और मल्टिप्लेक्सों का साम्राज्य है मगर इन सब के बावजूद गांव के मेले में ‘बांसुरी वाले’ के द्वारा बजायी जा रही वो मीठी धुन जिसपे हम बस पागल से हो जाया करते हैं, आज भी सबसे ज्यादा मिस की जाती है और बाबूजी का वो कांधा जहां बैठ के बच्चे आजभी खुद को किसी लाट-साहब से कम नहीं समझते हैं कि तो कोई तुलना ही नहीं है.Source: wordpress.com
11. गांव मे खेले जाने वाले खेल
बिना किसी खर्च के खेले जाने वाले खेल जिनमें दोल्हा-पत्ती और चिक्का भी शामिल हैं या फिर लगभग बिना खर्चे के खेले जाने वाले कंचा-गोली, गिल्ली-डंडा, कबड्डी और पतंगबाजी जैसे खेलों के लिए यहां कंपनी खोजने की जरूरत नहीं पड़ती और इसलिए ही तो गांव आज भी बेस्टमबेस्ट हैं.Source: wordpress.com