उत्तर भारत में तारों से बना यह पुल ‘अटल सेतु’ नाम से जाना जाता है, जोड़ता है तीन राज्यों को...
एक तरफ़ जहां भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी विदेशी यात्राओं
के माध्यम से भारत में निवेश लाने हेतु संघर्षरत हैं, वहीं जम्मू कश्मीर के
काठुआ जिले में उत्तर भारत का पहला पुल बना है जो पूरी तरह केबल(तारों) से
बना है. यह पुल तीन राज्यों को जोड़ेगा और साथ ही पर्यटन को भी बढ़ावा
देगा.
भारत सरकार के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर ने यह पुल आम जनता के लिए खोला. यह पुल रावी नदी के ऊपर स्थित है. यह पुल हिमाचल प्रदेश और पंजाब के अलावा जम्मू कश्मीर को भी जोड़ता है.
अटल सेतु नामक इस पुल के उद्घाटन में रक्षा मंत्री के साथ जनरल दलबीर सिंह और केंद्रीय मंत्री जितेन्दर सिंह भी मौजूद थे.
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर इस पुल का नाम रखा गया है. यह पुल दुनेरा-दुखनियाली-डर्बन-बसोही-भाधरवाह रोड पर स्थित है.
यह अपने तरह का चौथा पुल है. पहला बांद्रा-वर्ली मुंबई में, दूसरा नैनी पुल इलाहाबाद में और तीसरा विद्यासागर पुल कोलकाता में स्थित है.
592 मीटर लंबा यह पुल इंजीनियरिंग का अद्भुत उदाहरण है. यह पुल इंडियन रेलवे कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड (IRCON) और एसपी सिंगला कंस्ट्रक्शन ग्रुप के साझा कार्यक्रम से बना है. इस पुल का 350 मीटर हिस्सा तारों पर आधारित है.
यह पुल जम्मू कश्मीर के बसोहली को पंजाब के दुनेहरा से जोड़ता है, जिसकी वजह से पठानकोट का रास्ता 100 किमी से 45 किमी हो जाता है. इसके साथ ही यह हिमाचल प्रदेश के डलहौजी की दूरी 180 किमी से 45 किमी कर देता है.
यूपीए 2 ने इसकी शुरुआत की थी, हालांकि इसके शुरुआती दौर में इस पुल को बसोहली के ग्रामीणों द्वारा काफ़ी विरोध झेलना पड़ा था. यहां निर्मित रंजीत सागर डैम की जद में कुल 22 गांव आ गए थे.
इस पुल का निर्माण सन् 2011 में शुरू हुआ था और यह उसके तय समय से 1 माह पहले ही बन कर पूरा हो गया.
बॉर्डर रोड्स ऑर्गनाइजेशन (BRO) द्वारा निर्मित इस अटल सेतु में कुल 145 करोड़ की लागत आई है. इनफिनिटी इंजीनियर्स नामक एक कनाडाई कंपनी ने इस डिज़ाइन को बनाया था जिसे आईआईटी दिल्ली ने अप्रूव किया था.
अधिकारियों का कहना है कि इन पुलों में गुरुत्वाकर्षण का दबाव कम होता है जो इन्हें भूकंपविरोधी बनाता है.
यह पुल भौतिक रूप से जितने मजबूत होते हैं, दिखने में उससे कहीं अधिक ख़ूबसूरत होते हैं.
मगर भारत सरकार और रक्षा मंत्रालय इतने से ही संतुष्ट नहीं है और जम्मू कश्मीर में यातायात को सुगम बनाने के लिए 25 और सुरंगों के निर्माण में लगे हैं. साथ ही वे इस प्रयास में लगे हैं कि जम्मू कश्मीर में साल भर सड़कें खुली रहें और यातायात चलता रहे.
भारत सरकार के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर ने यह पुल आम जनता के लिए खोला. यह पुल रावी नदी के ऊपर स्थित है. यह पुल हिमाचल प्रदेश और पंजाब के अलावा जम्मू कश्मीर को भी जोड़ता है.
अटल सेतु नामक इस पुल के उद्घाटन में रक्षा मंत्री के साथ जनरल दलबीर सिंह और केंद्रीय मंत्री जितेन्दर सिंह भी मौजूद थे.
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर इस पुल का नाम रखा गया है. यह पुल दुनेरा-दुखनियाली-डर्बन-बसोही-भाधरवाह रोड पर स्थित है.
यह अपने तरह का चौथा पुल है. पहला बांद्रा-वर्ली मुंबई में, दूसरा नैनी पुल इलाहाबाद में और तीसरा विद्यासागर पुल कोलकाता में स्थित है.
592 मीटर लंबा यह पुल इंजीनियरिंग का अद्भुत उदाहरण है. यह पुल इंडियन रेलवे कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड (IRCON) और एसपी सिंगला कंस्ट्रक्शन ग्रुप के साझा कार्यक्रम से बना है. इस पुल का 350 मीटर हिस्सा तारों पर आधारित है.
यह पुल जम्मू कश्मीर के बसोहली को पंजाब के दुनेहरा से जोड़ता है, जिसकी वजह से पठानकोट का रास्ता 100 किमी से 45 किमी हो जाता है. इसके साथ ही यह हिमाचल प्रदेश के डलहौजी की दूरी 180 किमी से 45 किमी कर देता है.
यूपीए 2 ने इसकी शुरुआत की थी, हालांकि इसके शुरुआती दौर में इस पुल को बसोहली के ग्रामीणों द्वारा काफ़ी विरोध झेलना पड़ा था. यहां निर्मित रंजीत सागर डैम की जद में कुल 22 गांव आ गए थे.
इस पुल का निर्माण सन् 2011 में शुरू हुआ था और यह उसके तय समय से 1 माह पहले ही बन कर पूरा हो गया.
बॉर्डर रोड्स ऑर्गनाइजेशन (BRO) द्वारा निर्मित इस अटल सेतु में कुल 145 करोड़ की लागत आई है. इनफिनिटी इंजीनियर्स नामक एक कनाडाई कंपनी ने इस डिज़ाइन को बनाया था जिसे आईआईटी दिल्ली ने अप्रूव किया था.
अधिकारियों का कहना है कि इन पुलों में गुरुत्वाकर्षण का दबाव कम होता है जो इन्हें भूकंपविरोधी बनाता है.
यह पुल भौतिक रूप से जितने मजबूत होते हैं, दिखने में उससे कहीं अधिक ख़ूबसूरत होते हैं.
मगर भारत सरकार और रक्षा मंत्रालय इतने से ही संतुष्ट नहीं है और जम्मू कश्मीर में यातायात को सुगम बनाने के लिए 25 और सुरंगों के निर्माण में लगे हैं. साथ ही वे इस प्रयास में लगे हैं कि जम्मू कश्मीर में साल भर सड़कें खुली रहें और यातायात चलता रहे.